कबीर साहिब का बलख बुखारा के राजा सुल्तान अब्राहिम अधम को शरण में लेना

God Kabir

कबीर साहिब का बलख बुखारा के राजा सुल्तान अब्राहिम अधम को शरण में लेना

सुल्तान अब्राहिम अधम बलख बुखारा का राजा था। उसकी सोलंह हज़ार रानियाँ थीं। बहुत ही पैसे वाला धनाड्य राजा था। अठारह लाख घोड़े, बहुत हाथी और बहुत ज़्यादा सेना थी। अब्राहिम की जब  हाथी पर चढ़ कर सवारी निकलती थी तो इंद्र भी लज्जित हो जाता था।  इतने ठाठ-बाट से चलता था। एक-एक जूती सवा लाख रूपये की कीमत के हीरे, पन्ने, जवाहरात जुड़े हुए पहनता था।

एक समय की बात है कि किसी संत ने अब्राहिम सुल्तान को ऐसे ही कोई पाखण्ड में फंसा कर उनके  कर दिया।  उसके बाद अब्राहिम को संतों से नफरत हो गई कि ये पाखंडी लोग हैं। दुनिया को ठगते फिर रहे हैं। संतों को बुलाता, उनसे प्रश्न करे कि  बताओ प्रभु कैसा होता है? प्रभु कोई चीज़ तो होती नहीं कि  जेब से निकाल कर दिखा दें। उनके उत्तर से संतुष्ट न हो कर कैद में डाल देता तथा चक्की पीसने की सज़ा देता था।

एक समय रात्रि के समय राजा के महल के पास सत्संग हो रहा था। राजा ने अपने महल की छत पर बैठ कर सत्संग सुना। सुबह सर्व भक्तों को बुलाया तथा यही प्रश्न किया कि बताओ अल्लाह कैसा होता है? एक संत ने कहा - राजन, एक गिलास दूध मंगवाओ। मीठा डालकर दूध मंगवाया गया। वह संत दूध  में ऊँगली डाल रहा है, जैसे दूध में कुछ ढूंढ रहा हो। राजा ने कहा कि पी लो संत जी, मीठा डाल रखा है। संत ने कहा कि राजा, आप के दूध में घी नहीं है। कहते हैं दूध में घी होता है। तब राजा हँसता है तथा कहता है कि नादान, तुझे ये भी नहीं पता की दूध से घी कैसे बनता है? काहे का ईश्वर प्राप्त करेगा। सुन, पहले दूध गर्म किया जाता है, फिर उसमें जामन लगा कर दही बनाई जाती है, फिर रिड़क  कर मक्खन निकला जाता है। फिर शुद्ध घी गर्म करके बनाया जाता है। समझा? वह संत बोला - हे राजन, जैसे दूध से घी बनता है  विधि होती है, इसी प्रकार प्रभु पाने की विधि होती है। संत बताएगा, उसकी क्रिया करनी होती है।

अब्राहिम सुल्तान उनको कैद में डाल देता है तथा चक्की पीसने का दण्ड देता है। जब वे संत महादुखी हुए तब प्रभु से प्रार्थना की कि हे प्रभु! हमारी रक्षा करो। उधर से अपने हंस सम्मन  (जो गुरुदेव  बच्चे की कुर्बानी देने में भी पीछे नहीं रहा था) को संभालना था। वह परमेश्वर सत्पुरुष कबीर साहिब अपने सतलोक से आये और एक रेहबारी (ऊंटों वाले) का रूप बना कर राजा के महल के ऊपर छत पर प्रगट हो गए। लाठी को छत पर जोर जोर से मारने लगे। राजा ने पूछा कि महल के ऊपर किसकी आवाज़ आ रही है ? उसको पकड़ कर नीचे लाओ। सिपाही ऊपर गए और उस रहबारी को पकड़ कर राजा के सामने ले गए। राजा ने रहबारी से पूछा कि छत पर क्या कर रहा था ? साहिब कबीर ने (जो रहबारी के रूप में थे) कहा कि राजा मेरा ऊँट गम हो गया है। ढूंढ रहा था कि कहीं तेरी छत के ऊपर तो नहीं बैठा है। राजा ने कहा अरे नादान, ऊँट और छत पर कभी हो सकता है ? वह कहीं जंगल में मिलेगा।  ने कहा कि जिस प्रकार ऊँट छत पर नहीं सकता, अति असंभव। ऐसे ही परमात्मा ऐसे नहीं मिल सकता जैसे आपकी कोशिश है। प्रभु प्राप्ति पूर्ण संत से होती है, ऐसे नहीं होती। ऐसा कह कर अंतर्ध्यान हो गए।  उस कैद में पहुँचे जहाँ पर उन संतों को चक्की पीसने की सजा दी जा रही थी। सिपाहियों से कहा कि भईया, आपके राजा ने मेरी भी सजा कर दी, बताओ क्या करना है ? सिपाही बोले कि तेरी शामत आई तू आप ही आ गया। ले एक चक्की पर बैठ जा।  कबीर साहिब ने कहा की भईया, हम एक काम करेंगे या तो हमसे चक्की घुमवा लो और चाहे इसमें कनक डलवा लो। दोनों काम नहीं करेंगे। सिपाहियों ने सोचा की अच्छा क्रांतिकारी आया, इसको अभी ठीक करते हैं। सिपाही बोले कि ठीक है तुम चक्की पीसो और हम इसमें कनक डालेंगें। कबीर साहिब ने कहा कि ठीक है। कबीर साहिब ने कहा कि सभी भक्तात्मा जितने भी साधू हैं, खड़े हो जाओ। अपनी-अपनी चक्की के पास सभी खड़े हो गए। कबीर साहिब ने एक डंडा ले रखा था। उसको अपनी चक्की को छुआ और वह चक्की घूमने लगी। फिर सभी चक्कियों ने अपने आप घूमना शुरू कर दिया। कबीर साहिब ने सभी भक्तात्त्मयों को कहा कि आँखें बंद करो। सभी संतों ने आँखें बंद कर ली। फिर कहा कि आँखें खोलो। आँखें जब खोली तो कैद से बाहर जंगल में खड़े थे। कैद खाली हो गयी। कबीर साहिब ने कहा की यहाँ से भाग जाओ। इस नादान के राज्य में फिर मत आना। उसी समय सभी संत जान दौड़ गए और उस राजा की सीमा से बाहर चले गए। कबीर साहिब अंतर्ध्यान हो गए।

उधर से राजा इस घटना को देखकर जब उनके सामने से परमात्मा अंतर्ध्यान हो गए, बहुत मायूस हो गया, चक्कर खा कर गिर गया। मंत्री, रानियों ने जन्त्र -मन्त्र करने वाले को बुलाया। तांत्रिक ने राजा के दाई बाजू पर ताबीज बाँध दिया। कुछ दिनों के बाद कबीर साहिब अतिथि का रूप बना कर आये। रस्ते चलते राहगीर का रूप बना कर महल के अंदर जा कर कबीर साहिब ने राजा से कहा कि भाई, सराय वाले मुझे एक कमरा दे दो, रात्रि को यहीं रुकना है। किराया बता दो एक रात के क्या लोगे? राजा ने कहा कि नादान तुझे ये सराय नज़र आती है क्या? यह तो राजा का महल है। कबीर साहिब ने कहा कि इस महल में आपसे पहले कौन थे? अब्राहिम कहता है कि मेरे पिता जी। कबीर साहिब ने फिर पूछा कि उससे पहले कौन थे? अब्राहिम ने कहा कि मेरे दादा जी। कबीर साहिब ने फिर पूछा कि उससे पहले कौन थे? अब्राहिम ने कहा कि मेरे परदादा जी। फिर कबीर साहिब ने पूछा कि वे सब कहाँ गए ? अब्राहिम चिंतित होकर कहने लगा कि वे सभी अल्लाह (खुदा) को प्यारे हुए। कबीर साहिब ने पूछा कि नादान, आप इसमें कितने दिन रहोगे? सुल्तानी ने कहा मारना तो मुझे भी है। कबीर साहिब ने कहा नादान, फिर ये सराय नहीं तो क्या महल समझता है?

तेरे बाप दादा पड़ पीढ़ी, ये बसे सराय में गिद्दी।
ऐसे ही तू चली जाई, यूँ मैंने ये महल सराय बताई।।

इतना कह कर कबीर साहिब अंतर्ध्यान हो गए। राजा चक्कर खाकर गिर गया और बेहोश हो गया। फिर रानियाँ आईं, मंत्री आए। एक और अच्छा-सा कोई जन्त्र -मन्त्र करने वाला बुलाया। उस तांत्रिक ने बांई बाजू पर ताबीज बाँध दिया।

कुछ दिनों के बाद कबीर साहिब एक भैंसे को ले कर अब्राहिम राजा के दरबार के अंदर प्रकट हो गए। राजा कहने लगा कि भैंसे वाले तू कौन है? कबीर साहिब ने कहा की आपने कहा था की कोई मेरे प्रश्न का उत्तर दे कि अल्लाह कैसा होता है? मैं उत्तर देने आया हूँ। सुलतानी ने पूछा कि बताओ अल्लाह कैसा होता है? कबीर साहिब ने कहा कि भैंसे बता दे राजा को कि अल्लाह कैसा होता है? भैंसा कहने लगा कि यह अल्लाह खड़ा है, यह परवरदिगार मेरे पास खड़े हैं, यह पूर्ण ब्रह्म हैं, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड के प्रभु कबीर परमेश्वर हैं, आत्मकल्याण करा ले। अब्राहिम चरण छूने के लिए खड़ा हुआ तभी भैंसे सहित कबीर साहिब अंतर्ध्यान हो गए। राजा फिर चक्कर खा कर गिर गया। ऐसे ही फिर परिवार जन एकत्रित हुए और एक मौलवी बुलाकर गले में ताबीज बाँध दिया।

ऐसे ही महीना दो महीने के बाद फिर बात की भूल पड़ गई। राजा अपने बाग़ में दिन के समय विश्राम किया करता था और वहां राजा का बिस्तर एक नई बांदी प्रतिदिन लगाया करती थी। प्रत्येक की बारी लगा रखी थी। एक दिन कबीर साहिब आ कर एक बांदी (खवास) का रूप बना कर बाग़ में राजा की सेज सजाकर बिस्तर पर स्वयं लेट गए।  राजा विश्राम के लिए बाग़ में आया तो देखा की बांदी और मेरी सेज पर सो रही है। इसका इतना दिमाग खराब हो गया, इसको उच्च-नीच का ध्यान नहीं रहा। उठा कर तीन कौड़े मारे। कबीर साहिब (बांदी के रूप में) उठे और पहले तो रोये, फिर हँसते-हँसते लोट-पोट होने लगे। अब्राहिम ने सोचा की ऐसे कौड़े से तो घोड़ा भी गिर जाए और यह बांदी थोड़ी सी रोई, फिर इतनी हँस रही है, कारण क्या है? पूछता है कि बांदी तू रोई क्यों और हँसी क्यों? साहिब ने कहा कि रोई तो इसलिए कि मुझे पीड़ा हुई और हँसी इसलिए कि मैं तो एक घड़ी इस सेज पर सोई, जिसका भयंकर परिणाम भोगना पड़ा कि मुझे तीन कौड़े लगे। हँस इसलिए रही हूँ कि तेरा क्या होगा जो दिन रात इस गंदे बिस्तर पर सो रहा है?

मैं तो एक घड़ी सेज सोई, ताते मेरा ये हाल होई।
जो सोवे दिवस और राता, उनका क्या हाल विधाता।।

अब्राहिम सुल्तान अधम ने परमेश्वर का (बांदी रूप में) हाथ पकड़ लिया। उसी समय कबीर साहिब अंतर्ध्यान हो गए और अब्राहिम चक्कर खाकर गिर गया। दो घंटे में होश में आया। इधर से सभी मंत्रीगण, सैनिक, रानियाँ आ गए, राजा बहुत ही हताश हो गया। राजकाल से विमुख रहने लगा। किसी भी धन-संपत्ति में किसी प्रकार की मोह-ममता नहीं रही। सर्व परिवार हर दम चिंतित रहने लगा। क्योंकि अब्राहिम राज-काज से विमुख हो गया और उनको चिंता थी कि यह न जाने कब घर त्याग दे? ऐसे ही कुछ दिनों के बाद अब्राहिम ने छत के ऊपर कबूतर पाल रखे थे, उनको आकाश में उड़ा रहा था। एक बाज आया और उनमें से एक को तुरंत पकड़ कर ले गया। अब्राहिम देखता रह गया। उसी समय आकाश वाणी हुई कि या तो प्रभु भक्ति में लग जा, नहीं तो काल तुझे ऐसे ले जायेगा जैसे बाज कबूतर को ले गया है।अब्राहिम बहुत चिंतित होता है। सोचता है कि हे प्रभु! यह जीवन कैसा है? इसका कोई भरोसा नहीं, न जाने कब क्या हो जाए? अभी तक ये बेचारा कबूतर उड़ रहा था। अपने परिवार के साथ रह रहा था और एक ही पल में कालरूप बाज आया और उसको समाप्त कर दिया। आकाशवाणी होते ही उसकी चिंता और बड़ गई। बिलकुल खाना भी छूट जाता है। कुछ दिन ऐसे निकल गए।

रानियों तथा मंत्रियों ने सोचा कि राजा को शिकार पर ले जाया जाए जिससे इसका मन ठीक हो जाएगा। यह तो हर समय चिंता में रहने लग गया। पटरानियों तथा मंत्रियों ने प्रार्थना की कि राजन बाहर घूम कर आते हैं। हफ्ता दस दिन बाहर रहेंगे तो आपका मन ठीक हो जायेगा, शिकार खेलेंगे। राजा ने स्वीकृति दे दी। खाने और पीने की साड़ी व्यवस्था करके साथ में सैनिक लेकर चल पड़े। शान को जंगल में जा कर रुके। सुबह-सुबह फिर वहां शिकार खेलने के लिए चल पड़े। दोपहर हो गई, कोई भी शिकार (प्राणी) उनके काबू नहीं आया। इतने में एक हिरण आया। राजा ने कहा कि भाई सावधान हो जाना, यह मृग नहीं जाना चाहिए। अगर चला गया तो उससे ले लिया जाएगा जिसके पास से जाएगा। साहिब के कृपा हुई, वह मृग राजा के घोड़े के नीचे से निकल गया।

राजा अपनी ही कमजोरी मान कर उसके पीछे भाग लिया। घोड़ा दौड़ा दिया। मृग बहुत दूर जाकर अंतर्ध्यान हो गया। राजा विचलित हो गया। सोचने लगा कि इधर गया या इधर गया। राजा को बहुत जोर की प्यास लगी, घोडा भी प्यास के मारे बहुत परेशान हो गया। ऐसी स्थिति हो गई की दस मिनट में पानी नहीं प्राप्त हुआ तो राजा और घोड़े दोनों के प्राण जा सकते हैं। राजा प्रभु से याचना करता है कि हे प्रभु! रक्षा करना। उसी समय क्या देखा कि सामने एक बहुत सुन्दर तालाब है तथा बाग़ बना हुआ है। उसमें एक कुआँ भी है। एक जिन्दा महात्मा (मुसलमान फ़क़ीर की एक विशेष वेशभूषा होती है, उसे जिन्दा साधु कहते हैं। काला चोगा, सिर पर लम्बे चोटे का टोप) तीन कुत्तों को लिए हुए बैठे थे। पहले राजा ने घोड़े को पानी पिलाया, वृक्ष से बांधा, फिर स्वयं पानी पिया। फिर देखा कि एक महात्मा बैठे हैं। उसके पास बहुत सुन्दर तीन कुत्ते बंधे हुए हैं। राजा के मन में आया कि इनमें से दो कुत्तों को ले चलता हूँ और अपने राज भवन में रखूँगा। महात्मा जी के पास बैठ गया। सलाम वालेकम करके कहा कि महात्मा जी इन तीन कुत्तों का आप क्या करोगे? दो मुझे दे दो। कबीर साहिब जिन्दा के रूप में बोले कि यह कुत्ते ऐसे देने के नहीं हैं। यह जो पहले नम्बर का कुत्ता है यह बलख बुखारे का राजा था और इसको मैंने बहुत कहा था कि राजन परमात्मा की भक्ति करा करो। यह माना नहीं। अब यह कुत्ता बन गया। मैंने इसको बाँध रखा है। यह दुसरे नम्बर का इसका पिता जी है और तीसरे नम्बर का यह इसका दादा जी है। अब इनको रोज पीटता हूँ और जो यह काजू रखे, हलवा रखा, खीर राखी यह खाना चाहते हैं, परन्तु मैं नहीं खाने देता हूँ और पीटता हूँ। अब ये काजू के हलवे को तरस रहे हैं और यह जो खाली बेल रखी है कुत्ते बंधने वाली है, इसमें उसको बाँधूगा जो अब्राहिम सुल्तान अधम बलख बुखारे का राजा गद्दी पर अब बैठा है। वह भी कुत्ता बनेगा, वह भी भक्ति नहीं कर रहा है। उसको इसमें बाँध कर ऐसे पिटाई करूँगा। उन सभी कुत्तों को संगल (बेल) मारने लगे।

अब्राहम ने कहा कि महात्मा जी मैं ही बलख बुखारे का बादशाह हूँ। कबीर साहिब कहते हैं कि: -

यह तेरे बाप दादा थे भाई,इन्हें बड़ी बदफैल कमाई।
अब तू तख़्त बैठ कर भूली, तेरा मन चढ़ने को सूली।।

अब्राहिम सुल्तान अधम कबीर साहिब के चरणों में गिर गया। चरण पकड़ कर घंटों तक रोता रहता है। उसके बाद आँखें खोलकर  याचना करनी चाहि। फिर सामने न तो जिन्दा महात्मा है, न कुत्ते, न वहां कोई तालाब है और न ही कोई बगीचा और न कुआँ है। अब स्वपन माने कैसे? क्योंकि घोड़े के पैर अभी तक गीले हैं। पानी स्वयं पी रखा है। जान गया कि ये परमेश्वर थे। अब मेरी तृषा से रक्षा के लिए और तुझे चेतावनी देने के लिए आये थे। अगर जल प्राप्त न होता तो मेरे प्राण निकल जाते तथा राज-पाट यहीं रह जाता। राजा वापिस आया, किसी से बोला नहीं। शिकार में गए मंत्रियों तथा सैनिकों को हाथ से इशारा किया मानो कह रहा हो कि यहाँ से चलो। सारा काफिला अपना अपना सामान लाड कर चल पड़ा। एक हफ्ते में वापिस आना था। अगले दिन ही शाम को घर पहुँच गए। रानियों ने मंत्रियों से पूछा कि क्या बात हुई? मंत्रियों ने कहा की बादशाह जंगल में अकेले एक शिकार के पीछे गए थे। वापिस आये तो हम से बोले नहीं। न जाने इनके साथ क्या घटना घटी और बहुत ज्यादा दुखी हैं? अब्राहिम एक कमरे में बैठ गया। पटरानियों उसके पास गई, मंत्री भी खड़े हो गए। रानियाँ बोली कि आप तो ऐसे बच्चों की तरह बोल रहे हो कि मुझे ऐसे दिखाई दिया था। यह तो औरतें कहा करती हैं। आप मर्द हो कर ऐसी बातें करते हो।

इतने में एक कुत्ता आया। उस कुत्ते के सिर में बहुत गहरा जख्म था। कीड़े पड़े हुए थे। कुत्ते ने बिल्कुल सामने आकर कहा कि अब्राहिम यह मेरे सिर में देख। मेरे किये हुए कुकर्म मुझे भोगने पड़ रहे हैं। मैं ऐसे ही अमुक रियासत का राजा था। मेरी ऐसे-ऐसे उस राजा के साथ युद्ध में मृत्यु हो गई थी। जैसे भी जुल्म किये भईया मेरे सामने हैं। कुत्ते का जन्म और ऊपर से ये कीड़े पड़े हुए हैं।

अगर आपने अपना आत्मकल्याण करवाना है तो सुअवसर है चूको मत। उसी समय वह कुत्ता भाग गया (अंतर्ध्यान हो गया)। अब्राहिम ने कहा कि देखिये आप क्या कह रहे थे? कुत्ता भी बोल रहा था। फिर अब्राहिम अधम ने सर्व उपस्थित व्यक्तियों तथा परिजनों से कहा आप सब बाहर जाइए। सबको बाहर निकाल दिया। अंदर से कुण्डी लगा ली। रात के समय अपना काल मुँह किया ताकि कोई पहचान न ले। एक शाल की अलफी लगा ली अर्थात केवल शाल लपेट कर और पैरों में केवल जुतियाँ पहन कर घर तथा राज-पाट त्याग कर चल पड़ा। रात्रि में लगभग 15-20 किलोमीटर दूर निकल गया। सुबह हुई। भूख बहुत लगी हुई थी। सामने एक मालिन बेर बेच रही थी। अब्राहिम ने मालिन से कहा कि मालिन मुझे बहुत भूख लगी है। बेर दे दे, क्या कीमत है? मालिन ने कहा कि एक आने के एक सेर बेर देती हूँ। आना निकालो और सेर बेर ले सकते हो।

अब्राहम ने कहा कि मालिन एक आना नहीं है। मेरे पास जूती सवा लाख की एक है। हीरे और पन्ने इसमें लगे हुए हैं। तुझे यह जूती दे दूँगा, मुझे बेर दे दो। वह कहने लगी कि मुझे तो आना चाहिए। मैं खुल्ले कहाँ से लाऊंगी। भूख से व्याकुल सुल्तानी ने कहा कि मुझे खुल्लों की ज़रुरत नहीं, वापिस नहीं चाहिए। यह पूरी जूती रख ले। भूख से मेरी जान निकलने वाली है, मुझे बेर दे दे। एक सेर बेर मालिन ने तोल कर और अब्राहिम की झोली में डाल दिये। एक बेर पलड़े से नीचे गिर गया। मालिन ने कहा कि मेरा है, अब्राहिम ने कहा कि मेरा है। अब दोनों का झगड़ा हो गया। जब बहुत झगड़ा हो गया तो कबीर साहिब आए और कहा कि नादानों तुम दोनों की अकाल कहाँ गई है? मालिन को कहा कि तुझे सवा लाख  की जूती मिल गई एक बेर पर झगड़ा कर रही है।

सवा लाख की पाँवड़ी, एक आने का बेर।
देख अधम सुलतान ने, कैसी डारी मेर।।

अब्राहिम के मुख पर एक थप्पड़ लगाया और कहा कि सवा लाख के जूते डाल दिए और एक बेर पर लड़ रहा है। नादान, तूने क्या राज्य छोड़ा? लड़ाई ऐसी ही तो एक बेर पर, ऐसे ही राज्य पर, तूने त्यागा क्या? मैं-मेरी ज्यों की त्यों लिए फिर रहा है। अब्राहिम बेहोश हो गया। जब होश में आया तो न मालिन थी, न बेर थे। सब सतगुरु की लीला थी। (मालिन के रूप में भी तथा अन्य रूप में भी कबीर साहिब ही थे। वे हम प्राणियों को हर प्रकार से शिक्षा देते हैं) तब कबीर साहिब ने कहा कि अब्राहिम अब नाम ले और बेशक जाकर राज्य कर। अब्राहिम ने कहा कि अब आपके दास से राज्य नहीं होगा। अब तो दाता आपके चरणों में रहूँगा। कबीर साहिब ने प्रथम उपदेश दिया और कहा कि पुत्र मैं तेरे साथ रहूँगा, घबराना मत। ऐसा कहकर अंतर्ध्यान हो गए।

अब्राहिम सुल्तान अधम ने जंगल की ओर प्रस्थान किया। रस्ते में वर्षा होने लगी तथा शीतल हवा चल पड़ी। रात्रि का समय था। अब्राहिम सुल्तान अधम ने एक झोपड़ी के पीछे शीतल हवा से बचने के लिए रात्रि व्यतीत की। रात्रि के समय उस झोपड़ी के मालिक तथा मालकिन आपस में बातें कर रहे थे कि अच्छी वर्षा होने से अपने खेतों में अच्छी घास उगेगी तथा अच्छी फसल होगी। जिससे अपनी एक गाय है वह बहुत दूध दिया करेगी। अपने ऐसे ठाठ हो जायेंगे जो बलख बुखारे के बादशाह के भी नहीं हैं। उनके कोई संतान भी नहीं थी। यह सब वृत्तांत अब्राहिम सुल्तान अधम झोपड़ी के पीछे बैठा सुन रहा था। सुबह होने पर अब्राहिम ने उन से पूछा आपकी कितनी संतान है? उस व्यक्ति ने बताया कि हमारी कोई संतान नहीं है। अब्राहिम ने पूछा कितने पशु हैं? झोपड़ी वाले ने बताया कि एक ही गाय है। तब अब्राहिम सुल्तान अधम ने कहा कि आप भक्ति करो, प्रभु का नाम भजो और इस सांसारिक सुख की आशा छोड़ दो। यह दो दिन का जीवन है। पूरे गुरु से नाम लो और जीवन सफल करो।चलो तुम्हें भी अपने गुरुदेव से उपदेश दिला कर तुम्हारा कल्याण करवा दूँ। तुम रात्रि में क्या कह रहे थे कि आपका ऐश्वर्य साधना अब्राहिम सुल्तान अधम से भी अधिक हो जायेगा। आपके पास तो एक भैंगी पत्नी है तथा एक वृद्ध गाय है। इसी को आप अनमोल सम्पत्ति मान रहे हो। यह आपकी भूल है तथा बताया कि मैं ही बलख बुखार का बादशाह अब्राहिम सुल्तान अधम हूँ। मेरे गुरुदेव के द्वारा मुझे अब ज्ञान हो गया और उस सारी अस्थाई संपत्ति को त्याग कर प्रभु भक्ति में लीं रहता हूँ। अब्राहिम सुल्तान अधम के मुख से यह बात सुनकर उस झोपड़ी के मालिक ने कहा कि या तो आप अब्राहिम सुल्तान अधम बादशाह नहीं हो और यदि आप राज्य त्याग आए हो तो आप जैसा महामूर्ख कोई नहीं हो सकता और हम तेरे जैसी गलती नहीं कर सकते। अपना रास्ता नापो। तब अब्राहिम सुल्तान ने कहा कि हे परमेश्वर ये नादान प्राणी एक औरत तथा एक गाय को नहीं त्याग सकता। मुझ नीच पर आपने कैसे कृपा की मालिक? आपका गुणगान किन शब्दों से करूँ?

गरीब, रांडी डांडी न तजे, ये नर कहिये काग।
बलख बुखारा त्याग दिया, थी कोई पिछली लाग।।
कबीर, सतगुरु के उपदेश का लाया एक विचार।
जै सतगुरु मिलते नहीं, तो जाते नरक द्वार।।
कबीर, नरक द्वार में दूत सब, करते खेंचा तान।
उनसे कबहूँ न छूटता, फिरता चारों खान।।
कबीर, चार खानी में भरमता, कबहूँ न लगता पार।
सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।
कबीर, सात समुद्र की मसि करूँ, लेखनी करूँ बनराय।
धरती का कागज़ करूँ, गुरु गन लिखा न जाए।।

एक समय अब्राहिम अधम भूख से व्याकुल हो गया। इतने में नाना प्रकार के भोजन हलवा, पूरी, दही, कचौड़ी, पकौड़ी, खीर से सजी हुई आसमान से एक थाली आई। कपड़ा उठा कर अब्राहिम ने देखा कि इसमें तो वाही राजकीय भोजन है। हाथ जोड़कर कहा कि प्रभु यही तो त्याग कर आया था, इसी में फिर उलझ जाऊँगा, कृपया सूखी रोटी दे दो। तभी आकाशवाणी हुई कि पुत्र जब तेरी आत्मा में ऐसी भावना है तो यह तेरे पर प्रभाव नहीं करेगा, भोजन पाओ। अब्राहिम ने कहा कि प्रभु मैं तो लकड़ी तोड़ कर गुज़ारा कर लूँगा। दास को अभिमान हो जाएगा, ऐसा न करो। उसके बाद जंगल से लकड़ियाँ लता, उन्हें बेचता और मंत्र का जाप करता। कबीर साहिब ने कहा था कि आपको कुछ वर्षों के बाद सतनाम दूँगा। कुछ समय के बाद कबीर साहिब ने सतनाम प्रदान  किया। फिर कहा कि पुत्र जब योग्य हो जायेगा, तब मैं तुझे सारनाम दूँगा।

अब्राहिम को सारनाम प्राप्ति

एक दिन अब्राहिम ने सोचा कि कबीर साहिब से सारनाम की प्रार्थना करूँगा कि अगर आपका दास योग्य हो गया हो तो कृपया सारनाम बक्शो। अब्राहिम कबीर साहिब के दर्शन करने जा रहा था। रस्ते में एक बहन अपनी छत से कूड़ा डाल रही थी और वह कूड़ा धोखे से अब्राहिम सुल्तान के ऊपर गिर गया। अब्राहिम सुल्तान लाल आँखें करके क्रोधित होकर कहता है कि मैं आज राजा होता तो मजा चखा देता। उस लड़की ने भी कबीर साहिब से नाम उपदेश ले रखा था। जब वह लड़की सत्संग में आई तो अब्राहिम को सत्संग में बैठा देखा।

कबीर साहिब से लड़की ने पूछा कि महाराज जी क्या यह भक्त जी कभी राजा थे? कबीर साहिब ने पूछा कि क्या बात है बेटी? उस लड़की ने बताया कि ये आ रहे थे। मेरे से धोखे से भक्त जी के ऊपर कूड़ा गिर गया। ऊपर से मैंने नीचे ध्यान नहीं दिया। इन्होने बड़ी नाराज़गी व्यक्त की और कहा कि मैं राजा होता तो अब तुझे मज़ा चखा देता। ज्यों ही अब्राहिम साहिब से प्रार्थना करने लगा कि हे सतगुरु, यदि आपका दास सारनाम के योग्य हो गया हो तो कृपा करो। कबीर साहिब ने कहा कि अभी तू राजा है, दास नहीं बना है। अब्राहिम सोचने लगा कि राज तो बहुत दिन हो गए त्याग दिया। साहिब ने मुझे राजा कहा तो कोई दास में अवश्य कमी है। कबीर साहिब ने कोई दिन बताया कि उस दिन आना। उस निश्चित दिन को अब्राहिम सुल्तान अधम सत्संग में आ रहा था।

उस लड़की से कबीर साहिब ने कहा कि बेटी अब यह इस दिन और इस समय आएगा, ध्यान रखना। इस पर ऊपर से कीचड़ डालना। उस लड़की ने सुल्तानी के ऊपर कीचड़ डाल दिया। वह लड़की बनावटी अफ़सोस करने लगी कि भक्त जी मेरे पर गलती हो गई। मैंने ध्यान नहीं किया। अब्राहिम सुल्तान अधम ने कहा कि कोई बात नहीं बहन। यह पांच तत्व का पुतला शरीर भी तो मिट्टी है। मिट्टी पर मिट्टी डाली है बहन, कोई बात नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता। इस मिट्टी को धो लेंगे। यह कह कर अब्राहिम सुल्तान सत्संग में आ गया। कबीर साहिब ने लड़की से पूछा कि जब आपने इसके ऊपर कीचड़ डाला तो इसने क्या प्रक्रिया की? लड़की ने बताया कि महाराज जी आज इसने कहा की मिट्टी पर मिट्टी डाली है, बहन कोई बात नहीं, साहिब आज इसने कोई गुस्सा नहीं किया। सत्संग के उपरांत अब्राहिम ने प्रार्थना की कि आपका दास सारनाम के योग्य हो गया हो तो साहिब कृपा बक्शो। कबीर साहिब ने कहा कि पुत्र आज सारनाम के योग्य हो गया है। अब तुझे मंत्र दूँगा। साहिब ने सारनाम उपदेश दिया। तब अब्राहिम का कल्याण हुआ।


about Sant Rampal Ji

Jagat Guru Tatvadarshi Sant Rampal Ji Maharaj is a Complete Saint who gives true worship and imparts the true mantras to his devotees.