बन्दी छोड़ कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं। ये अनंत करोड़ ब्रह्मण्ड के विद्याता हैं। एक समय कबीर साहेब के सत उपदेश को सुन कर हिन्दु तथा मुसलमान उनसे नाराज हो गए और सिकंदर लौधी दिल्ली के बादशाह (जो काशी गया हुआ था) के पास बहु संख्या में इक्ट्ठे हो कर आ गए। कबीर साहेब की झूठी शिकायत की। मुसलमानों ने कहा कि यह कबीर हमारे धर्म की छवि धूमिल करता है। कहता है मस्जिद में खुदा नहीं हैं। मैं ही खुदा हूँ। मांस खाने वाले पापी प्राणी हैं। उनको खुदा सजा देगा और वे नरक में जाएंगे।
कबीर, मांस अहारी मानई, प्रत्यक्ष राक्षस जानि।
ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।।1।।
कबीर, मांस मछलिया खात हैं, सुरापान से हेत।
ते नर नरकै जाहिंगे, माता पिता समेत।।3।।
कबीर, मांस मांस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय।
जो कोई यह खात है, ते नर नरकहिं जाय।।6।।
कबीर, जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय।
निगम पुनि ऐसे पाप तें, भिस्त गया नहिंकोय।।14।।
कबीर, तिलभर मछली खायके, कोटि गऊ दै दान।
काशी करौत ले मरै, तौ भी नरक निदान।।16।।
कबीर, बकरी पाती खात है, ताकी काढी खाल।
जो बकरीको खात है, तिनका कौन हवाल।।18।।
कबीर, अंडा किन बिसमिल किया, घुन किन किया हलाल।
मछली किन जबह करी, सब खानेका ख्याल।।20।।
कबीर, मुला तुझै करीम का, कब आया फरमान।
घट फोरा घर घर दिया, साहब का नीसान।।21।।
कबीर, काजी का बेटा मुआ, उरमैं सालै पीर।
वह साहब सबका पिता, भला न मानै बीर।।22।।
कबीर, पीर सबनको एकसी, मूरख जानैं नाहिं।
अपना गला कटायकै, भिश्त बसै क्यों नाहिं।।23।।
कबीर, जोरी करि जबह करै, मुखसों कहै हलाल।
साहब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।28।।
कबीर, जोर कीयां जुलूम है, मागै ज्वाब खुदाय।
खालिक दर खूनी खडा, मार मुही मुँह खाय।।29।।
कबीर, गला काटि कलमा भरै, कीया कहै हलाल।
साहब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।30।।
कबीर, गला गुसाकों काटिये, मियां कहरकौ मार।
जो पांचू बिस्मिल करै, तब पावै दीदार।।31।।
कबीर, कबिरा सोई पीर हैं, जो जानै पर पीर।
जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बेपीर।।36।।
कबीर, कहता हूं कहि जात हूं, कहा जो मान हमार।
जाका गला तुम काटि हो, सो फिर काटै तुम्हार।।38।।
कबीर, हिन्दू के दाया नहीं, मिहर तुरकके नाहिं।
कहै कबीर दोनूं गया, लख चैरासी मांहि।।39।।
कबीर, मुसलमान मारै करद सों, हिंदू मारे तरवार।
कह कबीर दोनूं मिलि, जावैं यमके द्वार।।40।।
कबीर, पानी पथ्वी के हते, धूंआं सुनि के जीव। ृ
हुक्के में हिंसा घनी, क्योंकर पावै पीव।।8।।
कबीर, छाजन भोजन हक्क है, और दोजख देइ।
आपन दोजख जात है, और दोजख देइ।।9।।
यह कबीर काफिर है। मांस मिट्टी भी नहीं खाता। इसके दिल में दया नहीं है। यह धर्म के विपरीत साधना करता है और करवाता है। सिंकदर लौधी राजा ने कहा कि लाओ उस कबीर को पकड़ कर। इतना कहना था कि दस सिपाही गए तथा साहेब कबीर को बाँध लाए। राजा के सामने खड़ा कर दिया। साहेब कबीर चुप-चाप खड़े हैं। सिंकदर लौधी ने पूछा कौन है तू? बोलता क्यों नहीं? तू अपने आपको खुदा कहता है।
तब साहेब कबीर ने कहा मैं ही अलख अल्लाह हूँ। इस सच्चाई से दुःख मान कर सिकंदर लौधी ने एक गऊ के तलवार से दो टुकड़े कर दिये। गऊ को गर्भ था और बच्चे के भी दो टुकड़े हो गए। तब सिकंदर लौधी राजा ने कहा कि कबीर, यदि तू खुदा है तो इस गऊ को जीवित कर दे अन्यथा तेरा सिर भी कलम कर (काट) दिया जाएगा। साहेब कबीर ने एक बार हाथ गऊ के दोनों टुकड़ों को लगाया तथा दूसरी बार उसके बच्चे के टुकड़ों को लगाया। उसी समय दोनों माँ-बेटा जीवित हो गए। साहेब कबीर ने गऊ से दूध निकाल कर बहुत बड़ी देग (बाल्टी) भर दी तथा कहा -
गऊ अपनी अम्मा है, इस पर छुरी न बाह।
गरीबदास घी दूध को, सब ही आत्म खाय।।
कबीर, दिनको रोजा रहत हैं, रात हनत हैं गाय।
यह खून वह बंदगी, कहुं क्यों खुशी खुदाय।।33।।
कबीर, खूब खाना है खीचडी, मांहीं परी टुक लौन।
मांस पराया खायकै, गला कटावै कौन।।37।।
मुसलमान गाय भखी, हिन्दु खाया सूअर।
गरीबदास दोनों दीन से, राम रहिमा दूर।।
गरीब, जीव हिंसा जो करत हैं, या आगै क्या पाप।
कंटक जूनि जिहान में, सिंह भेढिया और सांप।।
जब साहेब कबीर खडे़ हुए तो उनके शरीर से असंख्यों बिजलियों जैसा प्रकाश दिखाई देने लगा। राजा सिकंदर लौधी ने साहेब कबीर के चरणों में गिर कर क्षमा याचना की तथा कहा कि -
आप कबीर अल्लाह हैं, बख्सो इबकी बार। दासगरीब शाह कुं, अल्लाह रूप दीदार।।
हे कबीर साहेब! आप वास्तव में भगवान हो। मुझे क्षमा करो। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लौधी ने साहेब कबीर को पालकी में बैठा कर साहेब कबीर के घर भिजवाया।
एक लड़के का शव (लगभग 12 वर्ष का) नदी में बहता हुआ आ रहा था। सिकंदर लौधी के धार्मिक गुरु (पीर) शेखतकी ने कहा कि मैं तो कबीर साहेब को तब खुदा मानूं जब मेरे सामने इस मुर्दे को जीवित कर दे। साहेब ने सोचा कि यदि यह शेखतकी मेरी बात को मान लेगा और पूर्ण परमात्मा को जान लेगा तो हो सकता है सर्व मुसलमानों को सतमार्ग पर लगा कर काल के जाल से मुक्त करवा दे। सिकंदर लौधी राजा तथा सैकड़ों सैनिक उस दरिया पर विद्यमान थे। तब साहेब कबीर ने कहा कि शेख जी - पहले आप प्रयत्न करें, कहीं बाद में कहो कि यह तो मैं भी कर सकता था। इस पर शेखतकी ने कहा कि ये कबीर तो सोचता है कि कुछ समय पश्चात यह मुर्दा बह कर आगे निकल जाएगा और मुसीबत टल जाएगी। साहेब कबीर ने उसी समय कहा कि हे जीवात्मा! जहाँ भी है कबीर हुक्म से इस शव में प्रवेश कर और बाहर आजा। तुरंत ही वह बारह वर्षीय लड़का जीवित हो कर बाहर आया और साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम की। सब उपस्थित व्यक्तियों ने कहा कि साहेब ने कमाल कर दिया। उस लड़के का नाम ‘कमाल‘ रख दिया तथा साहेब ने उसे अपने बच्चे के रूप में अपने साथ रखा। इस घटना की चर्चा दूर-2 तक होने लगी। कबीर साहेब की महिमा बहुत हो गई। लाखों बुद्धिमान भक्त आत्मा एक परमात्मा (साहेब कबीर) की शरण में आ कर अपना आत्म कल्याण करवाने लगे। परंतु शेखतकी अपनी बेईज्जती मान कर साहेब कबीर से ईष्र्या रखने लगा।
एक दिन शेखतकी अवसर पा कर बहु संख्या में मुसलमानों को बहका कर सिंकदर लौधी के पास ले गया। उस समय साहेब कबीर सिंकदर लौधी के विशेष आग्रह पर उनके मकान पर दिल्ली में ही थे। सिंकदर लौधी ने इतने व्यक्तियों के आने का कारण पूछा तो बताया कि शेखतकी कह रहा है कि यह कबीर काफिर है। कोई जादू जन्त्रा जानता है। यदि यह कबीर मेरी लड़की जो मर चुकी है और लगभग 15 दिन से कब्र में दबा रखी है, को जीवित कर देगा तो मैं और सर्व उपस्थित व्यक्ति भी इस कबीर की शरण में आ जाएंगे अन्यथा इस काफिर को सजा दी जाएगी। साहेब कबीर यही सोच कर कि हो सकता है यह नादान आत्मा ऐसे ही सतमार्ग स्वीकार कर ले, अपना भी उद्धार कर ले और अन्य आत्माओं का भी कल्याण करवा दे। चूंकि ये सर्व प्राणी आज चाहे मुसलमान हैं चाहे हिन्दू हैं, चाहे सिक्ख हैं और चाहे ईसाई बने हुए हैं सब कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) का ही अंश हैं। काल भगवान इनको भ्रमित किए हुए है। कबीर साहेब ने कहा कि आज से तीसरे दिन आपकी कब्र में दबी हुई लड़की जीवित हो जाएगी। निश्चित समय पर हजारों की संख्या में दर्शक कब्र के आस-पास खड़े हो गए। कबीर साहेब ने कहा हे शेखतकी! आप भी कोशिश करें। उपस्थित जनों ने कहा कि यदि शेखतकी के पास शक्ति होती तो अपनी बच्ची को कौन मरने दे? कृप्या आप ही दया करें। तब कबीर साहेब ने कब्र फुड़वा कर उस कई दिन पुराने शव को जीवित कर दिया। वह लगभग 13 वर्ष की लड़की का शव था। तब सभी उपस्थित व्यक्तियों ने कहा कि कबीर साहेब ने कमाल कर दिया - कमाल कर दिया। कबीर साहेब ने उस लड़की का नाम कमाली रखा। लड़की ने अपने पिता शेखतकी के साथ जाने से मना कर दिया तथा कहा कि हे नादान प्राणियों! यह स्वयं पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष) आए हैं। इनके चरणों में गिर कर अपना आत्म-कल्याण करवा लो। यह दयालु परमेश्वर हैं। हजारों व्यक्तियों ने साहेब के (मद्भक्त) मतावलम्बी अर्थात् साहेब कबीर के विचारों के अनुसार भक्त बन कर अपना कल्याण करवाया अर्थात् नाम दान लिया तथा कबीर साहेब ने उस कमाली लड़की को अपनी बेटी रूप में रखा।