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कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस: कबीर जी ने समाज में फैले झूठ और पाखंडवाद का पर्दाफाश कर, दिया प्रेम और सद्भावना का संदेश

Kabir Sahib Nirvan Divas

कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस: यह परमात्मा की ही दया है कि भारत की धरती पर ऋषि, मुनि, गुरु, संत, अवतार और महापुरूषों का जन्म होता रहा है। इनमें से कई बड़े समाज सुधारक रहे, तो कईयों ने यहां व्याप्त पाखंड़ का कड़ा विरोध कर नया इतिहास रचा। इन्हीं महापुरुषों में एक नाम स्वयं परमेश्वर कबीर साहेब जी का भी है जिन्होंने समाज सुधार और लोगों का परोपकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कबीर साहेब जी सशरीर कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए और बचपन से ही समाज में व्याप्त पाखंडवाद, आडंबरों और कुरीतियों का पुरज़ोर विरोध किया। जिसके कारण उस समय के हिंदू और मुस्लिम धर्म के ठेकेदार उनके दुश्मन बन गए और उन्होंने परमेश्वर कबीर जी को सैकड़ों यातनाएं भी दीं। लेकिन कबीर साहेब जी ने दोनों धर्मों में फैले पाखंड व आडंबरों का खुलकर विरोध किया। साथ ही उन्होंने जातिवाद, धार्मिक भेदभाव, ऊंच-नीच पर भी करारा प्रहार करते हुए प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। अपने परोपकार और समाज सुधार के कार्यों के कारण ही उन्हें आज भी एक सबसे बड़े समाज सुधारक और विचारक के रूप में जाना जाता है। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि कबीर साहेब जी स्वयं ही पूर्णब्रह्म परमात्मा थे और हैं। परमेश्वर कबीर जी के 505वें निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य पर जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में 30, 31 जनवरी व 1 फरवरी, 2023 को भारत और नेपाल में स्थित उनके सभी सतलोक आश्रमों में तीन दिवसीय विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। आइये कबीर साहेब जी के निर्वाण दिवस के अवसर पर हम जानते हैं कि ब्राह्मणों द्वारा फैलाए झूठ, पाखंड और अंधविश्वास का कबीर जी ने कैसे पर्दाफाश किया तथा जातिवाद, साम्प्रदायिकता व अन्य कुरीतियों को किस तरह समाप्त किया?

क्या सचमुच काशी में मरने से मिलता है स्वर्ग?

Supreme God Kabir Emancipation Day: काशी नगर के विषय में ब्राह्मणों ने दंतकथा फैला रखी थी कि भगवान शिव ने काशी की भूमि को वरदान दे रखा है कि जो काशी में मरेगा, वह स्वर्ग जाएगा। जिससे स्वर्ग जाने की होड़ में काशी में वृद्धों की भीड़ लग गई। कबीर परमेश्वर जी कहा करते थे कि स्वर्ग की प्राप्ति या जीव का मोक्ष किसी स्थान विशेष से नहीं हो सकता। बल्कि सतभक्ति करने वाले साधक की मृत्यु कहीं पर भी हो वह मोक्ष को प्राप्त होता है। संत गरीबदास जी महाराज बताते हैं कि कबीर जी कहते थे कि;

गरीब, मुक्ति खेत मथुरा पुरी, कीन्हां कृष्ण किलोल।
कंश केशि चानौर से, वहां फिरते डामांडोल।।
गरीब, जगन्नाथ जगदीश कै, उध्र्व मुखी है ग्यास।
मसक बंधी मन्दिर पड़ी, झूठी सकल उपास।।
गरीब, एकादशी अजोग है, एकादश दर है सार।
द्वादश दर मध्य मिलाप है, साहिब का दीदार।।
गरीब, माह महातम न्हात हैं, ब्रह्म महूरत मांहि।
काशी गया प्रयाग मध्य, सतगुरु शरणा नांहि।।
गरीब, कोटि जतन जीव करत हैं, दुबिध्या द्वी न जाय।
साहिब का शरणा नहीं, चालैं अपनै भाय।।

भावार्थ:- जो कहते हैं कि मथुरा-वृंदावन में जाने से मुक्ति होती है। वे सुनो! उसी मथुरा में जहाँ श्री कृष्ण लीला किया करते थे। आप उस स्थान पर जाने मात्र से मोक्ष मानते हो। उसी मथुरा में कंस, केसी (राक्षस) तथा चाणूर (पहलवान) भी रहते थे जो श्री कृष्ण ने ही मारे थे। इसलिए सत्य साधना करो और जीव कल्याण कराओ जो यथार्थ मार्ग है।

कोई जगन्नाथ के दर्शन करके और एकादशी का व्रत करके मोक्ष मानता है, यह गलत है। शास्त्र विरूद्ध है। कोई काशी नगर में, कोई गया नगर में जाने से मोक्ष कहते हैं। वे भूल में हैं। यदि पूर्ण सतगुरू की शरण नहीं मिली है तो मोक्ष बिल्कुल नहीं होगा। जब तक तत्त्वदर्शी सतगुरू नहीं मिलेगा, शंका समाप्त नहीं होगी। सब अपने स्वभाववश भक्ति मार्ग पर चल रहे हैं जो व्यर्थ है।

क्या सचमुच काशी करौंत (करौंथ) में गर्दन कटाने से मिलता है स्वर्ग?

जब ब्राह्मणों ने देखा कि काशी नगर में तो वृद्धों की भीड़ लग गई तो उन्होंने एक नया षड़यंत्र रचा। गंगा नदी के किनारे एक करौंत स्थापित किया जो लकड़ी काटने के काम आता था तथा भ्रम फैलाया कि जो शीघ्र स्वर्ग जाना चाहता है, वह करौंत से गर्दन कटाए और तुरंत स्वर्ग जाए। लोगों ने स्वर्ग जाने की चाह में करौंत (Karont) में गर्दन कटाना भी प्रारंभ कर दिया। परमेश्वर कबीर जी कहा करते थे कि करौंत लेने मात्र से स्वर्ग नहीं मिलता और न ही मोक्ष प्राप्त होता है। यह ब्राह्मणों द्वारा फैलाया गया पाखंड है जोकि एकदम झूठ है। केवल सत्य साधना से ही जीव का मोक्ष होता है। करौंत (करौंथ) लेने से कोई लाभ नहीं होने वाला।

पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में लिखा है कि शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करने यानि शास्त्रों में लिखी भक्ति विधि अनुसार साधना न करने से साधक को न तो सुख की प्राप्ति होती है, न भक्ति की शक्ति प्राप्त होती है, न उसकी मुक्ति होती है अर्थात् व्यर्थ प्रयत्न है।

गरीब, काशी करोंत लेत हैं, आन कटावें शीश।
बन-बन भटका खात हैं, पावत ना जगदीश।।

भावार्थ:– शास्त्र विरूद्ध साधक नकली-स्वार्थी गुरूओं द्वारा भ्रमित होकर कोई तो जंगल में जाता है, कोई काशी शहर में करौंत से सिर कटवाने में मुक्ति मानता है। इस प्रकार की व्यर्थ साधना जो शास्त्रोक्त नहीं है, उसे करने से कोई लाभ नहीं होता यानि परमात्मा नहीं मिलता।

काशी करौंत (Karont) की वास्तविक कथा क्या है?

हिन्दू धर्म के धर्मगुरू जो साधना समाज को बताते थे, वह शास्त्र विरुद्ध होने के कारण साधकों को परमात्मा की ओर से कोई लाभ नहीं मिला। धर्मगुरूओं ने समाज में अपनी महिमा बनाये रखने के लिए एक झूठी योजना बनाई कि भगवान शिव का आदेश हुआ है कि जो काशी नगर में प्राण त्यागेगा, उसके लिए स्वर्ग का द्वार खुल जाएगा। वह बिना रोक-टोक के स्वर्ग चला जाएगा। गुरूजनों की प्रत्येक आज्ञा का पालन करना अनुयायियों का परम धर्म माना जाता है इसलिए हिन्दू लोग अपने-अपने माता-पिता को आयु के अंतिम समय में काशी (बनारस) शहर में किराये पर मकान लेकर छोड़ने लगे।

लालचवश काशी के शास्त्रविरूद्ध साधना कराने वाले ब्राह्मणों ने अपने अनुयायियों (यजमानों) से कहा कि आप अपने माता-पिता को हमारे घर छोड़ दो। जो खर्च आपका मकान के किराए में तथा खाने-पीने में होता है, वह हमें दक्षिणा रूप में देते रहना। हम इनकी देखरेख करेंगे। इनको कथा भी सुनाया करेंगे। उनके परिवार वालों को अपने गुरुजनों का यह सुझाव अति उत्तम लगा और ब्राह्मणों के घर अपने वृद्ध माता-पिता को छोड़ने लगे और ब्राह्मणों को खर्चे से अधिक दक्षिणा देने लगे।

इस प्रकार एक ब्राह्मण के घर में 10-10 वृद्ध इकट्ठा हो गए। ब्राह्मणों ने लालच में आकर यह आफत अपने गले में डाल तो ली, परंतु वृद्धों को संभालना कठिन हो गया। कोई वस्त्रों में पेशाब कर देता, तो कोई शौच आँगन में कर देता। यह समस्या काशी के सर्व ब्राह्मणों को थी। तंग आकर ब्राह्मणों ने एक षड़यंत्र रचा।

गंगा नदी के किनारे करौंत बनाया

गंगा नदी के किनारे एकान्त स्थान पर एक नया घाट बनाया। उस पर एक डाट (आर्च) आकार की गुफा बनाई। उसके बीच के ऊपर वाले भाग में एक लकड़ी चीरने का आरा यानि करौंत लगा दिया जिसे दूर से लंबे रस्सों से संचालित किया जाता था। उस करौंत को पृथ्वी के अंदर (Underground) रस्सों से लगभग सौ फुट दूर से मानव चलाते थे।

षड़यंत्र के तहत नया समाचार सुनाया

ब्राह्मणों ने इसी योजना के तहत नया समाचा र अपने अनुयायियों को बताया कि परमात्मा का आदेश आया है कि पवित्र गंगा नदी के किनारे एक करौंत (Karont) परमात्मा का भेजा हुआ आता है। जो शीघ्र स्वर्ग जाना चाहता है, वह करौंत से मुक्ति ले सकता है। उसकी दक्षिणा भी बता दी। वहां रह रहे वृद्धों ने अपनी जिंदगी से तंग आकर अपने पुत्रों से कहा कि पुत्रों! एक दिन तो भगवान के घर जाना ही है, हमारा उद्धार शीघ्र करवा दो। जिससे बच्चों ने अपने-अपने वृद्ध माता-पिता की इच्छा के अनुरूप उन्हें उस करौंत से कटवाना प्रारंभ कर दिया और इस तरह उनकी मुक्ति मान ली।

पंडे झूठ बोलते रहे और यजमानों को ठगते रहे

कभी-कभी उस करौंत का रस्सा अटक जाता तो उस मरने वाले से कह दिया जाता था कि तेरे लिए अभी प्रभु का आदेश नहीं आया है। इस तरह की घटनाओं से जनता को और अधिक विश्वास होता चला गया तथा यह धारणा बहुत दृढ़ हो गई कि करौंत से मुक्ति पक्की है। जिसके नम्बर पर करौंत नहीं आता था, वह दुःखी होता था। अपनी किस्मत को कोसता था। मेरा पाप कितना अधिक है। मुझे परमात्मा कब स्वीकार करेगा? वे पाखण्डी उसकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहते थे कि चिन्ता न कर, एक-दो दिन में तेरा दोबारा नम्बर लगा देंगे। तब तक रस्सा ठीक कर लेते थे और हत्या का काम जारी रखते थे। इसको काशी में करौंत (करोंथ) लेना कहते थे और लोग विश्वास के साथ मुक्ति होना मानते थे। यह स्वर्ग प्राप्ति का सरल तरीका माना जाता था जबकि यह अत्यंत निन्दनीय और आपराधिक कार्य था।

गरीब, बिना भगति क्या होत है, भावैं कासी करौंत लेह।
मिटे नहीं मन बासना, बहुबिधि भर्म संदेह।।

इस वाणी में संत गरीबदास जी ने कहा है कि शास्त्र अनुकूल भक्ति के बिना कुछ भी लाभ नहीं होगा चाहे काशी में करौंत (Karont) से गर्दन भी कटवा लो। कुछ बुद्धिजीवी व्यक्ति विचार किया करते थे कि स्वर्ग प्राप्ति इतना सरल है तो यह विधि सतयुग से ही प्रचलित होनी चाहिए थी। यह तो सबसे सरल है। सारी आयु कुछ भी करो। वृद्ध अवस्था में काशी में निवास करो या करौंत से शीघ्र मरो और स्वर्ग में मौज करो। यानी स्वर्ग जाने की यह विधि भी संदेह के घेरे में थी। यदि इतना ही मोक्ष मार्ग है तो गीता जैसे ग्रन्थ में लिखा होता। ऐसी शास्त्रविरूद्ध क्रिया से मन के विकार भी समाप्त नहीं होते। जब जीव के ही समाप्त नहीं हुए तो मोक्ष होना बताना, संदेह स्पष्ट करता है।

कहते थे काशी में मरने वाला स्वर्ग, मगहर में मरने वाला नरक जाता है आखिर सच्चाई क्या है?

काशी नगर के ब्राह्मणों, पंडितों, हिंदू धर्मगुरुओं ने भ्रम फैला रखा था कि जो काशी शहर की सीमा में मरता है, वह सीधा स्वर्ग में जाता है और जो मगहर नगर (पहले यह गोरखपुर के पास उत्तरप्रदेश में था, वर्तमान में यह जिला-संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश में है) में मरता है, वह गधे का जीवन प्राप्त करता है तथा नरक में जाता है। परमेश्वर कबीर जी कहा करते थे कि शास्त्रोक्त सत्य साधना करने से तथा पाप त्यागकर धर्म-कर्म करने से परमात्मा मिलता है।

और शास्त्रविधि अनुसार साधना करने वाला चाहे काशी मरो, चाहे मगहर, वह अपनी साधना अनुसार ऊपर के लोकों में स्वर्ग का सुख प्राप्त करेगा। इसके विपरित अर्थात् शास्त्र विरुद्ध साधना करने वाला व पाप करने वाला सीधा नरक जाएगा या गधा बनेगा, चाहे वह मगहर मरे, चाहे काशी। अपने इन्हीं वचनों को सत्य प्रमाणित करने के लिए काशी (बनारस) शहर में 120 वर्ष लीला करके कबीर परमात्मा ने पंडितों, ब्राह्मणों तथा काज़ी-मुल्लाओं से कहा कि "मैं मगहर स्थान पर मरूँगा और स्वर्ग, महास्वर्ग (ब्रह्मलोक) से भी ऊपर शाश्वत स्थान सतलोक में जाऊँगा। आप (पंडितजन) अपना-अपना पतरा-पोथी ज्योतिष साथ ले चलना तथा देखना कि मैं कबीर कहाँ जा रहा हूँ?" और विक्रमी संवत् 1575 (सन् 1518) महीना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी को कबीर साहेब जी हजारों लोगों के सामने सहशरीर सत्यलोक को चले गए उनका वहाँ शरीर भी नहीं मिला था। जिसका वर्णन कबीर परमेश्वर के सामर्थ्य से परिचित होने के बाद संत गरीबदास जी ने इस प्रकार किया है -

गरीब, काया काशी मन मघर, दुहूं कै मध्य कबीर।
काशी तजि मगहर गया, पाया नहीं शरीर।।
गरीब, च्यार बर्ण षट आश्रम, बिडरे दोनौं दीन।
मुक्ति खेत कूं छाड़ि करि, मघहर भये ल्यौलीन।।
गरीब, मगहर मोती बरषहीं, बनारस कुछ भ्रान्त।
कांसी पीतल क्या करै, जहां बरसै पारस स्वांति।।
गरीब, मगहर मेला पूर्ण ब्रह्मस्यौं, बनारस बन भील।
ज्ञानी ध्यानी संग चले, निंद्या करैं कुचील।।
गरीब, मुक्ति खेत कूं तजि गये, मघहर में दीदार।
जुलहा कबीर मुक्ति हुआ, ऊंचा कुल धिक्कार।।
गरीब, च्यार बर्ण षट आश्रम, कल्प करी दिल मांहि।
काशी तजि मघहर गये, ते नर मुक्ति न पांहि।।
गरीब, भूमि भरोसै बूड़ि है, कलपत हैं दहूं दीन।
सब का सतगुरु कुल धनी, मघहर भये ल्यौलीन।।
गरीब, काशी मरै सौ भूत होय, मघहर मरै सो प्रेत।
ऊंची भूमि कबीर की, पौढैं आसन श्वेत।।
गरीब, काशी पुरी कसूर क्या, मघहर मुक्ति क्यौं होय।
जुलहा शब्द अतीत थे, जाति बर्ण नहीं कोय।।
गरीब, काशी पुरी कसूर योह, मुक्ति होत सब जाति।
काशी तजि मघहर गये, लगी मुक्ति शिर लात।।

इन वाणियों में संत गरीबदास जी ने बताया है कि काशी में मरने से मुक्ति और मगहर में मरने से नरक जाने की धारणा एकदम गलत है। सबका मालिक कुल धनी यानि पूर्ण परमात्मा कबीर जी स्वयं मगहर से ही सतलोक (अमरलोक) गए थे। भूमि के भरोसे मुक्ति की इच्छा करने वाले श्रद्धालु अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं।

क्या गंगा में नहाने से मोक्ष मिलता है?

हिंदू धर्म के धर्मगुरुओं, ब्राह्मणों, पंडितों आदि द्वारा एक और पाखंड फैलाया गया था कि गंगा नदी में स्नान करने से मुक्ति (मोक्ष) मिलती है और पाप कट जाते हैं। परमेश्वर कबीर जी कहा करते थे कि यदि ऐसा होता तो तुमसे पहले उस नदी में बहुत से जलीय जीव (मछली, कच्छुआ आदि) रहते हैं उनकी मुक्ति होनी चाहिए थी, उनके पाप कटने चाहिए थे। किन्तु उनकी मुक्ति नहीं होती और न ही पाप कटते हैं तो फिर आपकी कैसे हो सकती है। कबीर साहेब जी कहते थे कि चाहे गंगा दरिया (नदी) के किनारे बस जाओ, चाहे गंगा का निर्मल जल पियो, इन पाखंडों से मुक्ति नहीं मिलेगी और न ही पाप कटेंगे। बल्कि मुक्ति यानी मोक्ष तो सतनाम (सच्चे मंत्र) के जाप करने से होगा और इसी से पाप भी समाप्त होंगे।

कबीर तीरथ करि- करि जग मुआ, उड़े पानी नहाए।
सतनाम जपा नहीं, काल घसीटे जाए।।

जातपात का भेदभाव करना परमात्मा का आदेश नहीं: कबीर साहेब

जिस समय जातिप्रथा, छुआछूत एवं ऊंच-नीच की असमानता समाज में बड़े पैमाने पर व्याप्त थी उस दौरान कबीर साहेब जी ने निर्भय होकर जाति भेदभाव का खंडन किया। कबीर जी ने जाति भेदभाव पर प्रहार करते हुए कहा था कि जन्म के आधार पर कोई ऊंच-नीच नहीं होता। ऊंचा वह है जिसके कर्म अच्छे हैं और नीच वह है जो बुरे कर्म करता है। जब सभी का परमात्मा एक है, सभी के शरीर में हड्डी, मांस, रक्त आदि एक जैसे हैं और सभी के जन्म लेने का तरीका भी एक ही है तो फिर कोई ब्राह्मण और कोई शूद्र कैसे हो सकता है? यह सब धारणाएं मानव द्वारा बनाई गई हैं, यहां किसी भी तरह का भेदभाव करना परमात्मा का आदेश नहीं है।

धार्मिक भेदभाव को समाप्त कर कबीर जी ने दिया प्रेम व सद्भावना का संदेश

सन् 1398 में जब कबीर परमेश्वर सशरीर शिशु रूप में काशी के लहरतारा तालाब में कमल के खिले हुए फूल पर प्रकट हुए थे तब भारत वर्ष में हिंदू और मुस्लिम दो ही धर्म मुख्य रूप से प्रचलन में थे। उस समय दोनों धर्मों के मध्य भेदभाव भी चरम पर था। दोनों धर्मों के बीच साम्प्रदायिकता की आग धधक रही थी। ऐसे समय में कबीर परमेश्वर ने दोनों धर्मों के लोगों को आपसी भेदभाव, दुश्मनी और ईर्ष्या समाप्त कर प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया था। जिससे धार्मिक झगड़े समाप्त हो गए थे। जिसका प्रमाण आज भी मगहर (वर्तमान जिला संत कबीर नगर) में देखने को मिलता है। कबीर साहेब जी कहते थे कि "सर्व मनुष्य एक प्रभु के बच्चे हैं जो इन्हें दो मानता है वह नरक में जायेगा।"

हिंदू मुस्लिम दो नहीं भाई,
दो कहै सो दोजख (नरक) जाही।

परमेश्वर कबीर जी कहा करते थे कि आपके धर्मगुरु ब्राह्मण, पंडित, काज़ी-मुल्ला, मौलवी आदि लालचवश आपको भ्रमित किये हुए हैं जिससे आप सभी हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, आर्य-बिश्नोई, जैनी आदि-आदि धर्मों में बंटे हुए हो। लेकिन सच तो यह है कि आप सब एक ही परमात्मा (अल्लाह) के बच्चे हो।

हिंदू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
आर्य-जैनी और बिश्नोई, एक प्रभू के बच्चे सोई।।
हिन्दू मुस्लिम दोनों भुलाने, खटपट मांय रिया अटकी।
जोगी जंगम शेख सेवड़ा, लालच मांय रिया भटकी।।
उदर बीज कहा था कलमा, कहा सुन्नत एक ताना।
बाप तुर्क मां हिंदवानी, सो क्यों कर मुस्लामाना।।
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।।

परमेश्वर कबीर जी ने धार्मिक भेदभाव को भी समाप्त किया। यहां पढ़ें कुछ अन्य दोहे

कबीर-अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।

कबीर-राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।

कबीर-कृष्ण करीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।

कबीर-काशी काबा एक है, एकै राम रहीम।
मैदा एक पकवान बहु, बैठि कबीरा जीम।।

कबीर-एक वस्तु के नाम बहु, लीजै वस्तु पहिचान।
नाम पक्ष नहीं कीजिये, सार तत्व ले जान।।

कबीर-सब काहू का लीजिये, सांचा शब्द निहार।
पक्षपात ना कीजिये, कहै कबीर विचार।।

कबीर-राम कबीरा एक है, दूजा कबहू ना होय।
अंतर टाटी कपट की, तातै दीखे दोय।।

कबीर-राम कबीर एक है, कहन सुनन को दोय।
दो करि सोई जानई, सतगुरु मिला न होय।।

संत रामपाल जी के सानिध्य में मनाया जाएगा परमेश्वर कबीर जी का निर्वाण दिवस

जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में "परमेश्वर कबीर जी के 505वें निर्वाण दिवस" (Kabir Parmeshwar Emancipation Day) के उपलक्ष्य में अमरग्रन्थ साहेब के 3 दिवसीय अखंड पाठ का 30-31 जनवरी, 2023 से 01 फरवरी, 2023 तक सतलोक आश्रम, रोहतक (हरियाणा) से सीधा प्रसारण आप Sant Rampal Ji Maharaj यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं।

आज से लगभग 505 वर्ष पूर्व (महीना माघ, शुक्ल पक्ष, तिथि एकादशी विक्रमी संवत् 1575 सन् 1518 को) परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ ने उत्तरप्रदेश के मगहर कस्बे से लाखों लोगों के सामने सशरीर सतलोक (ऋतधाम) को प्रस्थान किया था, उसी दिन की याद में 9 सतलोक आश्रमों में तीन दिवसीय विशाल महाभंडारे का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें निःशुल्क नामदीक्षा, रक्तदान शिविर, दहेज व आडंबर रहित आदर्श रमैनी विवाह का भी आयोजन किया जा रहा है। इस विशाल महाभंडारे में आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

अवश्य देखिए संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग का विशेष प्रसारण साधना टीवी चैनल और पॉपकॉर्न मूवी पर सुबह 9:15 (IST) बजे।

Kabir Parmeshwar Nirvan Divas

संत रामपाल जी महाराज जी के नेतृत्व में यह 3 दिवसीय विशेष समागम इन 9 सतलोक आश्रमों में मनाया जायेगा।

  1. सतलोक आश्रम, शामली, उत्तर प्रदेश
  2. सतलोक आश्रम, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
  3. सतलोक आश्रम, धुरी, पंजाब
  4. सतलोक आश्रम, मुंडका, दिल्ली
  5. सतलोक आश्रम, रोहतक, हरियाणा
  6. सतलोक आश्रम, खमाणों, पंजाब
  7. सतलोक आश्रम, सोजत, राजस्थान
  8. सतलोक आश्रम, भिवानी, हरियाणा
  9. सतलोक आश्रम, धनुषा, नेपाल

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी कर रहे हैं सभी तरह की कुरीतियों को समाप्त

वर्तमान में कबीरपंथी संत, जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी, कबीर परमेश्वर जी के पद चिन्हों पर चलते हुए समाज में फैले आडंबरों, पाखंडों और कुरीतियों को खत्म करते हुए समाज को एक नई दिशा दे रहे हैं और सतभक्ति का मार्ग बता रहे हैं। जातिवाद, धार्मिक भेदभाव और अन्य अनेक कुरीतियों को समाप्त कर समाज को प्रेम और भाईचारे के सूत्र में बांध रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी का नारा है -

जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।

आप संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नामदीक्षा लेने के लिए या अपने नजदीकी नामदीक्षा सेंटर का पता करने के लिए निम्नलिखित नंबरों पर संपर्क करें :- 8222880541, 42, 43, 44, 45 तथा संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पवित्र आध्यात्मिक पुस्तकें (ज्ञान गंगा और जीने की राह) निःशुल्क मंगवाने के लिए अपना पूरा नाम, पूरा पता, पिन कोड और मोबाइल नम्बर हमारे WhatsApp नम्बर 7496801825 पर Message करें और भी अनेकों आध्यात्मिक पुस्तकें PDF में Download करने के लिए हमारी वेबसाइट www.jagatgururampalji.org के Publications पेज पर Visit करें तथा देखिये जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन सुप्रसिद्ध TV चैनल्स पर (भारतीय समयानुसार {GMT+5:30 IST}) साधना चैनल पर शाम 07:30 से 8:30 बजे तक, पॉपकॉर्न मूवीज चैनल पर शाम 07:30 से 8:30 बजे तक, ईश्वर चैनल पर सुबह 06:00 बजे से 07:00 बजे तक, श्रद्धा Mh1 चैनल पर दोपहर 02:00 से 03:00 बजे तक, सुदर्शन न्यूज़ चैनल पर सुबह 06:00 बजे से 07:00 बजे तक, नेपाल1 चैनल पर सुबह 06:00 से 07:00 बजे तक, लोकशाही न्यूज़ चैनल पर मराठी में सत्संग सुबह 05:55 से 06:55 बजे तक।

Supreme God Kabir Ji Emancipation Day (निर्वाण दिवस ): FAQ

Q. संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में कबीर परमेश्वर के निर्वाण दिवस पर किन किन कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है?

Ans. तीन दिवसीय अखंड पाठ, तीन दिवसीय अखंड भंडारा, रक्तदान शिविर, दहेज मुक्त रमैनी विवाह और निःशुल्क नाम दीक्षा।

Q. क्या गंगा नदी में नहाने से मोक्ष होता है?

Ans. नहीं, सद्द भक्ति करने से मोक्ष प्राप्त होता है।

Q. क्या काशी करौंत लेने से स्वर्ग की प्राप्ति होती थी?

Ans. नहीं, यह ब्राह्मणों का रचा षडयंत्र था।

Q. क्या स्थान विशेष जैसे काशी, मथुरा आदि स्थानों में मृत्यु होने से मुक्ति मिलती है?

Ans. स्थान विशेष मुक्ति में कोई सहयोगी नहीं है, सद्द भक्ति करने वाला साधक कहीं प्राण त्यागे वह मोक्ष प्राप्त करता है।

Q. क्या गंगा नदी में नहाने से पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं?

Ans. नहीं, सतनाम और सारनाम मंत्रों के जाप करने से पाप कर्म समाप्त होते हैं।

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